नदी गुजर गई | बुद्धिनाथ मिश्र
नदी गुजर गई | बुद्धिनाथ मिश्र

नदी गुजर गई | बुद्धिनाथ मिश्र

नदी गुजर गई | बुद्धिनाथ मिश्र

एक नदी गुजर गई
ताल के बगल से
कुछ न कह सका ठहरा जल
बहते जल से।

पिंजरे का पंछी क्या बोले
बनपाखी से
पाँवों का बिछुआ
क्या बोले बैसाखी से
बाँझ डाल क्या बोले
बौरे कोंपल से।

लोरियाँ सुनी घन की
सावन के झूलों ने
मेड़ों की डाँट सुनी
सरसों के फूलों ने
सुधि के निर्माल्य गिरे
धानी आँचल से।

हल्की-सी आहट पर
बंद द्वार का खुलना
तोड़कर चट्टानों को
निकले जैसे झरना
दोने भर नशा माँग
लाई जंगल से।

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