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झरते हैं शब्द-बीज | बुद्धिनाथ मिश्र

झरते हैं शब्द-बीज | बुद्धिनाथ मिश्र झरते हैं शब्द-बीज | बुद्धिनाथ मिश्र आहिस्ता-आहिस्ताएक-एक करझरते हैं शब्दबीजमन के भीतर। हरे धान उग आतेपरती खेतों मेंहहराते सागर हैंबंद निकेतों मेंधूप में चिटखता हैतन का पत्थर। राह दिखाते सपनेअंधी खोहों मेंद्रव-सा ढलता मैंशब्दों की देहों मेंलिखवाती पीड़ा हैहाथ पकड़कर। फसलें झलकें जैसेअँकुरे दानों मेंआँखों के आँसूबतियाते कानों मेंअर्थों […]