मदर मेरी | कमल कुमार
मदर मेरी | कमल कुमार

मदर मेरी | कमल कुमार – Mother Mary

मदर मेरी | कमल कुमार

खिड़की के उस तरफ कुर्सी पर बैठा व्यक्ति वैसे ही ठंडे और निसंग-भाव से कागजों को उलट-पलट रहा था। इस कॉलम में बच्चे के पिता का यानि अपने पति का नाम भरिए।

‘इसकी जरूरत नहीं है।’ स्त्री ने तल्खी से कहा था।

मैम, यहाँ कॉलम है न बच्चे के पिता के नाम का। तो? बच्चे के पिता का नाम तो होना ही चाहिए। आप यहाँ इस कॉलम में बच्चे के पिता का नाम भरिए।

देखिए, मेरा तलाक हो चुका है, वह भी दस साल पहले। मुझे अब उससे कुछ लेना-देना नहीं। इसमें तलाक का कागज भी है। आप मेरे कागज प्रोसेस कीजिए।

आपको बताया न मैम। इस कॉलम में पिता का नाम भरिए। उसके दस्तखत भी चाहिए। क्यों? क्यों चाहिए उसके दस्तखत।

बच्चे का बाप है। अगर आप बच्चे को लेकर विदेश में रह जाएँ तो…।

मैं कहीं भी रह सकती हूँ बच्चे के साथ। बच्चा मेरा है। इसकी कस्टडी के कागज हैं। अब हमें उससे कुछ लेना-देना नहीं।

आपको कुछ नहीं लेना, पर अपने बच्चों का पासपोर्ट तो लेना है। ये लीजिए मैम अपने कागज पूरे कीजिए।

मेरे सारे कागज पूरे हैं। वह उसे कागजों का ब्यौरा दे रही थी।

आप हमारा समय बर्बाद कर रही हैं। जाइए, आप ऊपर जाकर पासपोर्ट अफसर से बात कर लीजिए।

बेबस उसने अपने कागज समेटे थे। वह मुड़ी तो देखा, वही कल वाली लड़की थी, उसके पीछे लाइन में खड़ी थी।

वह जाने लगी तो उस लड़की ने रोककर पूछा था, आप पासपोर्ट अफसर से मिलने जा रही हैं। वह बिना उसकी बात का जवाब दिए, वहाँ से खिसक गई थी।

ऊपर गई थी। पासपोर्ट अफसर अपने कमरे में नहीं था।

‘मीटिंग में हैं सॉब! आप बैठिए। आ जाएँगे।’ लड़के ने कहा था। उसने घड़ी देखी थी। अभी आध-पौने घंटे में लंच हो जाएगा। वह बेचैन-सी उठकर बाहर बरामदे में घूमने लगी थी। वही व्यक्ति था, ‘आप उन्हें ऊपर देख लीजिए। शायद वहाँ हों।’

वह ऊपर गई थी। चौथी मंजिल थी। लिफ्ट का कुछ पता नहीं था। उसने देखा बरामदे के कोने में दो व्यक्ति ताश खेलने में डूबे हुए थे। उसने पूछा था तो पता चला था, इन्हीं में से एक पासपोर्ट अफसर था। वह पास गई थी – एक्सक्यूज मी सर।

कोई असर नहीं हुआ था। ‘सर एक्सक्यूज मी।’ उसने बड़ी कठिनाई से ताश के पत्तों से नजरें हटाई थीं। उसने अपना कार्ड दिया था, ‘आई एम फ्राम मीडिया न्यूज’, उसने अपना कार्ड उसकी तरफ बढ़ाया था, ‘आई एम स्पेशल कारसपोंडेंट। आपसे बात करनी है।’

‘ओ-ऽ के-ऽ आप नीचे मेरे कमरे में बैठिए। मैं आता हूँ।’

लड़की ने अपने गुस्से पर काबू पाया था – वहीं से आ रही हूँ सर। बताया था आप किसी मीटिंग में हैं।

उसने उसकी तरफ देखा था, ‘आप मुझे धमका रही हैं। मीडिया पर्सन होने का रौब दिखा रही हैं।’ वह फिर सँभला था।

‘आईए मैम!’ वह उठ खड़ा हुआ था और उसके साथ चलकर अपने कमरे में आ गया था। उसने देखा, वही लड़की थी, बाहर बैंच पर बैठी थी। लड़की ने पासपोर्ट अफसर को सारी जानकारी दी थी। अपने सारे कागज दिखाए थे और उसने समझाया था – देखिए, उस क्रिमिनल का नाम मैं अपने बच्चे के साथ नहीं जोड़ सकती। वह पॉलीटिकल व्यक्ति है। मंत्री का अपराधी बेटा है। मेरे पास सारे कागज हैं। यह मेरे तलाक के कागज हैं। यह इस बच्चे की कस्टडी के कागज हैं। यह लीजिए, यह अखबार की कटिंग है। यह वही महत्वपूर्ण केस हैं, गीता हरिहरण का, सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। इसमें माँ को लीगल गार्जियन घोषित किया गया है।

सर, आई एम लीविंग इंडीपेंडेंटली। मैंने उससे कोई मैनटेनस नहीं ली है। दस साल से मैं ही बच्चे को पाल रही हूँ। यह बच्चा तीन महीने का था, तब मैंने उसका घर छोड़ दिया था। आपका स्टाफ मुझे तंग कर रहा है।

ऐसी बात नहीं है मैम। कुछ औपचारिकताएँ होती हैं। उन्हें पूरा करना पड़ता है। आप तो जानती हैं कि व्यवस्था ही ऐसी है। आप एक काम कीजिए मैम। जिस सांसद ने आपके कागज प्रमाणित किए हैं, उनसे एक रेफरेंस लैटर ले आइए। बस फिर हो जाएगा काम। सॉरी मैम, फार द बोदरेशन…।

मजबूर-सी वह बाहर आई थी। उसने देखा, वही लड़की थी। वह कमरे से बाहर आई तो वह अंदर चली गई। उसकी चीखती-सी आवाज आई थी – क्यों चाहिए पिता का नाम? उफ्। उसने अपना माथा पकड़ लिया था। फिर नीचे आ गई थी। उसको लगा था, चिट्ठी लेने में मुश्किल नहीं होगी। वह सांसद उसकी सहेली की आंटी थी।

उसने सांसद के पी.ए. को फोन किया था। पी.ए. ने कहा था, अभी बात करके पाँच मिनट में फोन करता हूँ।

फोन आया था, आ जाइए। वह वहाँ गई थी। प्रवेशद्वार पर सूचना आ गई थी। वहीं से सीधी पार्किंग में गाड़ी लगाकर ऊपर चली गई थी। पी.ए. ने उसका स्वागत किया था। फोन करके उसे सांसद के कमरे में ले गया था। वह सांसद कुर्सी पर बैठी थी, उसे देखकर उचकी थी, आओ, आओ। परेशान न हो। पी.ए. ने मुझे सब बता दिया है। हमारी व्यवस्था ही ऐसी है। वह चिट्ठी ड्राफ्ट करके तुम्हें दिखा देता है। अच्छा, क्या लोगी? चाय, कॉफी या कुछ ठंडा? आप इस सबकी चिंता ना करें।

‘अरे भई, तुम्हारे साथ भी कॉफी ली लेंगे। मैं मँगवाती हूँ।’ उसने दो कॉफी का आर्डर दिया था। या तो तुम घर पर आती नहीं हो, आती हो तो ऐसा समय चुनकर जब मैं घर पर ना हूँ।’

ओ-ऽ नो-ऽ आंटी।

वह ठहाका लगाकर हँसी थी। वह चिट्ठी लेकर आ गया था। उसने दस्तखत करके अपनी मोहर लगाई थी। ‘होप! थिंग्स विल बी ओ-ऽ के-ऽ नाउ।’ वह शुक्रिया करके बाहर आई थी। तुरंत गाड़ी में बैठकर पासपोर्ट दफ्तर आई थी। वह चिट्ठी लेकर काउंटर पर गई थी। उसने घड़ी देखी, ज्यादा समय नहीं लगा था। कुल मिलाकर डेढ़ घंटे में सब हो गया था। उसने देखा, काउंटर पर सीट खाली थी। उसने साथ वाले व्यक्ति से पूछा था, ‘अभी आ रहा है। आप बैठिए।’

‘पर भैया लंच का समय तो कब का खत्म हो गया है।’

‘वह लंच से वापिस आ गया था मैम। वह ऊपर गया है। साहब ने बुलाया है।’

वह वहीं खड़ी रही थी। तनाव में थी। पर वह जल्दी ही आ गया था। उसने उसे चिट्ठी दी थी।

‘यह लीजिए। अब जल्दी ही मेरा पासपोर्ट बन जाना चाहिए।’

‘मैम, आप जरा ऊपर चली जाइए। साहब के पास। उन्होंने ही यह चिट्ठी माँगी थी। वे ही लिखकर देंगे इस पर। हम तो कुछ नहीं कर सकते।’

उसने गुस्से में दाँत किट-किटाए थे। ‘मैं ऊपर-नीचे कहीं नहीं जाऊँगी। आपके बीच स्टाफ में कोई कॉर्डीनेशन नहीं है। आपका अफसर कुछ कह रहा है और आप कुछ दूसरी बात कह रहे हैं।’

ठीक है मैम। आप यह चिट्ठी भी छोड़ जाइए। दूसरे सारे कागज भी दे दीजिए। मैम अपने पुराने पासपोर्ट की कॉपी भी दे दीजिए। उसने कॉपी दी थी।

‘जी मैम। इसमें तो बच्चे के पिता का नाम है।’

यह तलाक से पहले का पासपोर्ट है।

ठीक है मैम। आप कल आ जाइए।

गुस्से में वह तिलमिलाई थी। पर अपने को रोका था। अब सारी औपचारिकता पूरी हो चुकी है। पासपोर्ट लेने तो कल आना ही पड़ेगा।

वह बाहर आने के लिए मुड़ी तो देखा वही लड़की थी। थोड़ी अस्त-व्यस्त लगी थी। घुटनों पर फाइल रखकर कुर्सी पर बैठी कागज अलट-पलट रही थी।

उसे देखकर वह उचकी थी।

‘मैम…’ उसने पुकारा था। ‘आपका काम हो गया।’

रेफरेंस की चिट्ठी दी है। कल आने के लिए कहा है।

‘जी-ऽ’ वह फिर उसी मुद्रा में बैठ गई थी। और कहा था, मैम मैंने तो रेफरेंस की चिट्ठी भी दी है। पर यह लोग परेशान कर रहे हैं। उसने सिर हिलाया था। जाकर बैठ गई थी।

अगले दिन वह पहुँची थी। भीड़ उतनी नहीं थी। वह लाइन में खड़ी हो गई थी। जल्दी ही उसका नंबर भी आ गया था। काउंटर पर बैठे आदमी ने कहा था, ‘मैम आप पहले उस सामने वाले काउंटर नं. 2 पर फीस जमा करा दीजिए।’

वह काउंटर-2 पर गई थी, उसने फीस जमा कराई थी। लौटकर वहीं आ गई थी।

देखा, वही लड़की थी, चंडी का रूप धारण किए थे, वह दहाड़ी थी, ‘क्यों चाहिए आपको पिता का नाम?’

मैम आपका बच्चा है तो पिता का नाम तो चाहिए ही होता है।

‘इसका कोई पिता नहीं है। मेरा कोई पति नहीं है। मेरी शादी नहीं हुई है। समझे आप! पाँच दिनों से आप एक ही रट लगाए हो, पिता का नाम! पिता का नाम!

नहीं है इसका कोई पिता। उसने पैर पटके थे और जोर से चीखी थी, ‘आइ एम रेप विक्टम। गैंग रेप हुआ था। मेरा गैंग रेप हुआ था!! चार लोगों ने रेप किया था मेरा। पंद्रह साल की थी। स्कूल बस में रेप किया था चार लोगों ने। नाम बताऊँ, लिखिए, बस का ड्राइवर मानक चंद, बस का कंडक्टर पांडे, स्कूल का चपरासी यादव और स्कूल के सामने ढाबे का मालिक सतबीर!

लिखिए पिता का नाम लिखिए। मुझे भी बता दीजिए। लिखिए पिता का नाम, लिखते क्यों नहीं, मेरी तरफ क्यों देख रहे हो? पूरी लॉबी में सन्नाटा छा गया था। लोग अपना काम छोड़कर अपनी-अपनी जगह जम गए थे। वह दुगुने जोर से चीखी थी, जाइए, इसके पिता से दस्तखत करवा लीजिए। कस्बे में जाइए। हो सकता है, वे अभी भी छुट्टा साँड़ की तरह घूम रहे हों। जाइए आप, किसके दस्तखत करवाएँगे। बोलिए…। वह चीखी थी।

और कुछ चाहिए। कोई और सूचना चाहिए। लिखिए पिता का नाम लिखिए आप। साँप क्यों सूँघ गया आपको…? चुप क्यों हो गए आप?

ऐसा लग रहा था जैसे गोलियाँ चल रही हों, ठाँय-ठाँय-ठाँय। सब सहमे से अपनी जगह चिपक गए थे। वह लड़की लड़खड़ाई थी। उसके साथ बैठी महिला उठकर आ गई थी, उसे सँभाला था। गले से लगाया था, शांत होजा मीनू-ऽ, शांत हो जा बच्ची-ऽ। अपने को सँभाल। तू तो बहादुर बच्ची है न!

वह उसके पास आ गई थी। वह लड़की बोली थी, पाँच दिनों से देख रही हूँ आप भी परेशान हैं। आपकी भी समस्या पिता के नाम की है।

मैं पंद्रह साल की थी, जब यह हादसा हुआ था। मेरे माता-पिता मुझे लेकर यहाँ आ गए थे। मेरा अबार्शन नहीं हो सका था। ट्रामा में रही कई महीने, अनीमिक थी। बच्चा पैदा हुआ। इसको मरवाया जा सकता था। एक विकल्प यह भी था। इसको अनाथ आश्रम में दिया जा सकता था। फिर मैंने सोचा था, इसमें इस अबोध का क्या कसूर। यह तो निष्पाप है। इसने तो ऐसा कुछ नहीं किया जिसकी इसे सजा दी जा सके। आखिर मेरे खून, मांस-मज्जा से बना है। मेरी कोख से पला है। मैंने इसे स्वीकार लिया था। अब बताइए, इनको क्यों चाहिए बच्चे के पिता का नाम?

अचानक वह उठी थी। काउंटर पर बैठे व्यक्ति को ललकारा था, पाँच मिनट में पासपोट चाहिए मुझे…।

धीरे-धीरे कठपुतलियों से लोग हिलने-डुलने लगे थे। काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने उसकी ओर इशारा किया था, ‘मैम अपना पासपोर्ट ले लीजिए।’

वह गई थी, अपना पासपोर्ट ले लिया था। उसने उसे खोला था और एकाएक चीखी थी, ‘यह क्या किया?’ बच्चे के नाम के सामने पिता का नाम लिखा था।

वह व्यक्ति घबराया-सा था, दी गई सूचनाओं के आधार पर बच्चे का और आपका पासपोर्ट रिन्यू कर दिया है।

आप पागल हो गए हैं?

यह सरकारी मामला है मैम।

अगला, आप आइए…।

लाइन से निकलकर पीछे खड़ा आदमी सामने आ गया था।

सामने वह लड़की गुर्राती हुई बैठी थी। काउंटर पर वह आदमी कभी कागज पलटता, कभी उस लड़की को देखता हक्का-बक्का बैठा था।

उसने देखा सब पुरुषों के चेहरों पर उस लड़की की दागी गई गोलियों के गहरे नीले-काले निशान पड़ गए थे। उनमें से कहीं-कहीं खून भी टपक रहा था। उस लॉबी में औरतें कम थीं। कुछ काउंटर के इस तरफ, कुछ दूसरी तरफ तो भी कुछ औरतें थीं। आसपास के चर्चों से निकलकर मदर मेरी के चित्र और प्रतिमाएँ यहाँ आ गई थीं और वे औरतें उन चित्रों और प्रतिमाओं में समाती जा रही थीं। वह चित्र आलटर पर पीछे रखे मदर मेरी का चित्र था, जो उस लड़की में समा गया था।

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