मेरे शब्द | नीरजा हेमेंद्र
मेरे शब्द | नीरजा हेमेंद्र

मेरे शब्द | नीरजा हेमेंद्र

मेरे शब्द | नीरजा हेमेंद्र

पतझड़ के पीत-पत्र
गिरतें हैं धरा पर हृदय को बेध देता है
कंटक लाल गुलाबों से भरे पौधे से निकल कर।
मैं तुम्हारे समीप आतीं हूँ
जब एक कृशकाय वृद्ध
करता है प्रयत्न निद्रामग्न होने का
अन्नहीन पेट पर बाँध कर गीले अंगोछे को
मैं तुम्हारे ही समीप आती हूँ
खाली बर्तनों में ढूँढ़ते हुए
रोटी के टुकड़े
जब एक बच्चा रोता है
मैं असहाय-सी हो कर आती हूँ
तुम्हारे अत्यंत समीप
नारी की देह पर जब होता है
कलुषित प्रहार से
चित्कार उठती है उसकी पवित्र आत्मा
हृदय तुम्हें छूने लगता है
संवेदनाएँ करतीं हैं तुम्हारा स्पर्श
ओ मेरे शब्द !
तुम बन जाते हो मेरा प्रेम, मेरी पीड़ा
तुम उतर आते हो मेरी मेरी कविताओं में, मेरे गीतों में
तुम्हारे अत्यंत समीप आ जाती हूँ मैं
ओ मेरे शब्द !
तुम एकाकार हो जाते हो मुझमें
बहने लगते हो
लहू बन कर हो मेरी रगों में।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *