मेरे महबूब | अभिमन्यु अनत मेरे महबूब | अभिमन्यु अनत इस शहर मेंहवा जहर लिये होती हैउम्मीदें टूटती हैंविधवा की चूड़ियों की तरहइस शहर मेंगर्भपात लिये बहती है नहरचुनाव बाद की घड़ियों की तरहवायदे भुलाए जाते हैं।