हमारी आँख | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

मनुष्यशक्ति | नरेश सक्सेना

कितना कोयला होगा मेरी देह में
कितनी कैलोरी कितने वाट कितने जूल
कितनी अश्वशक्ति
(मैं इसे मनुष्यशक्ति कहूँगा)
कितनी भी ठंडक हो बर्फ हो
अँधेरा हो
एक आदमी को गर्माने भर के लिए एक बार
तो होगा ही काफी
अब एक लपट की तलाश है
कोयले के इस छोटे से गोदाम के लिए।

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