मंडी हाउस में एक शाम | अंकिता रासुरी
मंडी हाउस में एक शाम | अंकिता रासुरी

मंडी हाउस में एक शाम | अंकिता रासुरी

मंडी हाउस में एक शाम | अंकिता रासुरी

वह सोचता रहा, उसने तो कहा था
गिटार बजाते हुए लड़के
उसे आ जाया करते हैं पसंद अक्सर
झनझनाते रहे तार और वह गाता रहा
एक हसीना थी…
किसी गुजरी हुई शाम की याद में

और वह खींचती रही आड़ी तिरछी रेखाएँ
फाइल के पन्नों में कुछ इधर उधर देखते हुए
ठंडी हो चुकी चाय के प्याले में अटका रह गया कोई
तस्वीर में उतरने से कुछ पहले ही
वह ताकती रह गई दिशाओं को

नाटक-करते करते वह
सच में ही रो पड़ा अभिनय की आड़ में
गूँजती रही तालियाँ
और वह सोचता रहा
यह अभिनय की जीत है या
उसकी हार

और कविता करते हुए
वह कहती रही
बस लिखती रही यूँ ही किसी के लिए
तुम्हें सुनाऊँ
शब्दों का खयाल अच्छा है

चाय और अंडे बनाती वो और उसका पति
परोसते हुए सोच रहे थे
कच्चे मकान और
ठिठुरती शामें कितनी लंबी होंगी अब की बार

मंडी हाउस के ऊपर लटका हुआ चाँद
और तुम
एक बार फिर ये शाम अच्छी है

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