मधुर! बादल, और बादल, और बादल | माखनलाल चतुर्वेदी
मधुर! बादल, और बादल, और बादल | माखनलाल चतुर्वेदी

मधुर! बादल, और बादल, और बादल | माखनलाल चतुर्वेदी

मधुर! बादल, और बादल, और बादल | माखनलाल चतुर्वेदी

मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं 
और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

गरज में पुरुषार्थ उठता, बरस में करुणा उतरती 
उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया शृंगार करती 
बूँद-बूँद मचल उठी हैं, कृषक-बाल लुभा रहे हैं।। 
नेह! संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

तड़ित की तह में समाई मूर्ति दृग झपका उठी है 
तार-तार कि धार तेरी, बोल जी के गा उठी हैं 
पंथियों से, पंछियों से नीड़ के रुख जा रहे हैं 
मधुर! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं।।

झाड़ियों का झूमना, तस्र-वल्लरी का लहलहाना 
द्रवित मिलने के इशारे, सजल छुपने का बहाना। 
तुम नहीं आए, न आवो, छवि तुम्हारी ला रहे हैं।। 
मधुर! बादल, और बादल, और बादल छा रहे हैं,

और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *