लोकतंत्र पर संकट-1 | अनुकृति शर्मा
लोकतंत्र पर संकट-1 | अनुकृति शर्मा

लोकतंत्र पर संकट-1 | अनुकृति शर्मा

लोकतंत्र पर संकट-1 | अनुकृति शर्मा

झंडे फहराते
निशान बजाते
नहीं होते हैं
लोकतंत्र पर वार।

अंधड़ छुपाए मेघ से
घिरे आते हैं तानाशाह
छाँह झूठी
नींद मीठी
सोते हैं न्यायालय
संसद अखबार।

हम तुम
कंधे उचकाते, बतियाते
होते हैं अनजान
जब पैरों-तले
खुलते हैं
अंधे गार।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *