लक्ष्मी टॉकीज की याद में | विमल चंद्र पांडेय
लक्ष्मी टॉकीज की याद में | विमल चंद्र पांडेय

लक्ष्मी टॉकीज की याद में | विमल चंद्र पांडेय

लक्ष्मी टॉकीज की याद में | विमल चंद्र पांडेय

उसकी याद किसी पुरानी प्रेमिका से भी ज्यादा आती है
उसने देखा है मेरा इतना अच्छा वक्त
जितना मैंने खुद नहीं देखा
किशोरावस्था के उन मदहोश दिनों में
जब हम एक नशे की गिरफ्त में होते थे
हमें उम्मीद होती थी कि आगे बहुत अच्छे दिन आएँगे
जिनके सामने इन सस्ते दिनों की कोई बिसात नहीं होगी
लेकिन लक्ष्मी टॉकीज जानता था कि ये हमारे सबसे अच्छे दिन हैं
वह हमारे चेहरे अच्छी तरह पहचानता था
तब से जब वहाँ रेट था 6, 7 और 8 और वहाँ लगती थीं बड़े हॉलों से उतरी हुई फि़ल्में
सच बताऊँ तो हम बालकनी में फिल्में बहुत कम देखते थे
कभी 6 और कभी 7 जुटा लेने के बाद 8 के विकल्प पर जाने का हमें कोई औचित्य नजर नहीं आता था
मेरे बचपन के दोस्तों में से एक है वह
हमेशा शामिल रहा वह हमारे खिलंदड़े समूह में
सबसे सस्ती टिकट दर पर हमें फिल्में दिखाने वाले मेरे इस दोस्त के पास मेरी स्मृतियों का खजाना है
जो मैं इससे कभी माँगूँगा अपनी कमजोर होती जा रही याद्दाश्त का वास्ता देकर
मेरे पास जो मोटी-मोटी यादें हैं उतनी इसे प्यार करने के लिए बहुत हैं
घर से झूठ बोलकर पहली बार देखी गई फिल्म ‘तू चोर मैं सिपाही’ के बाद
जब हम गाते हुए निकले थे लक्ष्मी से ‘हम दो प्रेमी छत के ऊपर गली-गली में शोर’
तो हमें मालूम नहीं था कि जीने के समीकरण हमेशा इतने सरल नहीं होंगे

हमारे चेहरों पर नमक था और आँखों में ढेर सारा पानी
कितनों ने तो उसी पानी को बेचकर रोजी रोटी का जुगाड़ किया है
और यह सवाल वाकई इतना तल्ख है
कि मैं यह नहीं कह पाता कि उस पानी में कभी मेरी तस्वीर बनती थी तो उसमें कुछ हिस्सा मेरा भी था

स्मृतियों की भी उम्र होती है और इनसानों की तुलना में बहुत ही कम
ये बात अव्वल तो कभी किसी ने बताई नहीं
कहीं सुना भी तो अविश्वास की हँसी से टाल दिया
अब जब कि क्षीण हो रहा है जीवन
वाष्पीकृत हो रही हैं स्मृतियाँ
दिनों की मासूमियत सपनों की तरह याद आती है
उन्हें याद करने के लिए आँखें बंद कर मुट्ठियाँ भींच दिमाग पर जोर लगाना पड़ता है
ऐसे में जब माइग्रेन का दर्द बढ़ जाता है
बेतरह याद आती है लक्ष्मी टॉकीज की
जहाँ से निकलते एक बार हमने घर में बचने के लिए ईंटों के बीच छुपा दी थीं
अपनी-अपनी लाल टिकटें

अब जबकि पूरी तरह से भूल गया हूँ लक्ष्मी टॉकीज में बरसों पहले खाए चिप्स का स्वाद
जिसे खाने का मतलब हमारे पास कुछ अतिरिक्त पैसे होना था
उसके लिए कुछ न कर पाने का अफसोस होता है
हमारी इतनी खूबसूरत स्मृतियों के वाहक को
जब कालांतर में बदल दिया गया ‘शीला मेरी जान’ और ‘प्राइवेट ट्यूशन टीचर’ लगाने वाली फिल्मों में
तो हम क्यों नहीं गए एक बार भी उसके आँसू पोंछने
हम क्यों नहीं समझ पाए कि किसी की पहचान बदलना
दरअसल उसे धीरे-धीरे खामोशी से खत्म किए जाने की साजिश का हिस्सा होता है

मेरी आँखों के सामने धीरे-धीरे एक बड़ी साजिश के तहत
बदलते हुए रास्तों से ले जाकर बंद कर दिया गया है उसे
अब भी उसके चेहरे पर चिपका है एक अधनंगी फिल्म का पोस्टर कई सालों से
जो सरेआम उसके बारे में अफवाहों को जन्म देता रहता है
और उसकी छवि बिगाड़ने की भरपूर कोशिश करता है

हम जानते हैं उसका हश्र
किसी दिन वह इमारत अपने पोस्टर समेत गिरा दी जाएगी
और उसकी जगह कोई ऊँची सी इमारत बनाई जाएगी
जिसमें ऊपर से नीचे तक शीशे लगे होंगे
हमारे जैसे पैसे जुटा कर फि़ल्में देखने वाले लोगों का वहाँ फटकना भी मुश्किल होगा
बताया जाएगा कि शहर की खूबसूरती बढ़ेगी उस इमारत से
लेकिन अभी मुझे सिर्फ लक्ष्मी टॉकीज की छवि की चिंता है
कल को कोई यह न कहे कि अच्छा हुआ जो यहाँ एक मॉल बन गया
यहाँ एक हॉल था जहाँ हमेशा गंदी फिल्में लगती थीं

मॉल बनाइए, हाइवे बनाइए, फ्लाइओवर बनाइए
लेकिन यह मत कहिए कि हम इनके बिना मरने वाले थे अगले ही दिन
सिर्फ जिंदा रहने की बात करें जो हममें से ज्यादातर लोगों के लिए सबसे बड़ा सवाल है
तो हमारे लिए रोटियों के साथ अगर कोई और चीज चाहिए थी
वह था थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा नमक और लक्ष्मी टॉकीज

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