विमल तुम्हें इलाहाबाद याद करता है ! | विमल चंद्र पांडेय
विमल तुम्हें इलाहाबाद याद करता है ! | विमल चंद्र पांडेय

विमल तुम्हें इलाहाबाद याद करता है ! | विमल चंद्र पांडेय

विमल तुम्हें इलाहाबाद याद करता है ! | विमल चंद्र पांडेय

कीडगंज वाले लॉज के कमरा नं 110 से लेकर
थाने वाली सड़क पर पतली सीढ़ियों वाले मकान
और 5, महात्मा गांधी मार्ग तक
यानि कि सिर्फ ढाई साल में
तुमने कितने ठिकाने बदले विमल !
यानि कितना सफाई से जीते रहे इलाहाबाद को अलग-अलग कोणों से

तुम कब अपनी जिंदगी में एक साथ इतना हँसे थे
जितना विवेक के साथ रात को एक बजे टहलते गलियों में ढीमला रहे शराबियों की बातों पर हँसते थे
कहते थे कि शराबी कितने पागल होते हैं
मजे़ कि बात कि तुम दोनों पिए होते थे
खुद का इतना मजाक उड़ाने का मौका तुम्हें और कौन सा शहर दे सकता है विमल ?

किताबों और वकीलों के इस शहर में तुम हँस चुके हो अपने अगले दस साल का कोटा
इसीलिए जहाँ जाते हो हँसने के लिए इलाहाबाद खोजने लगते हो
मानो तुम इलाहाबाद के दुलारे बच्चे हो और वह गुदगुदी करेगा तुम्हारे पेट में

जॉनसेनगंज चौराहे के जाम में फँसे अपनी ‘प्रेस’ लिखी मोटरसायकिल पर बैठे
तुम कितने इलाहाबादी दिखाई देते थे और वह दिखाई देना कितना सुकून भरा होता था
कि कहीं किसी को ऐसा न दिखाई दे तो उसे दिखाने के लिए वो तुम्हारा हॉर्न बजाकर कहना
‘चलो में, आगे बढ़बो ?’
‘कस में, केत्ता हारन बजाय रहे हो, उड़ के चल जाई का ?’

किसी शहर से प्यार होने की प्रक्रिया किसी इनसान से प्यार होने से एकदम अलग नहीं है
कब हम उसे इतना समझना शुरू कर देते हैं कि उसके बिना जीना मुश्किल हो जाता है
जैसे उससे ज्यादा कोई नहीं समझता हमारे मौन, अव्यक्त दुख
जैसे वह कोई अपना सगा सा है जिसके हृदय में स्पंदित होता है हमारा प्रेम, हमारा विषद, हमारी पीठ का दर्द

अगर इलाहाबाद कोई इनसान होता तो तुम देखते
इसने तुम्हें हमेशा उठाए रखा अपने कंधे पर
दिल्ली ने ठोकरों से कुछ सबक सिखाए थे
इस मामले में यह रही तुम्हारे पिता जैसी
जिन्होंने आत्मविश्वास भरने के लिए छोड़ दिया दस साल के बालक को
ननिहाल जाने वाली ट्रेन में अकेला
मगर इलाहाबाद ने माँ की तरह सिखाया चीजों को बरतना
पहली नौकरी, पहला प्यार और पहला झगड़ा
सब कुछ पूरे रौ में दिया कभी भी बिना कोई कंजूसी किए

तुम समझ चुके हो विमल !
इलाहाबाद जो देता है पूरी तरह देता है

अपने बनारस से चाहे जितना प्यार कर लो गुरू !
ये शहर कुछ अलग है
यहाँ वैराग्य में भी राग है
यहाँ यमुना में वहाँ से कम पानी हो सकता है
लेकिन लोगों की आँखों में इतना पानी है कि तुम कभी प्यासे नहीं मर सकते

लीडर रोड का कटलेट वाला, एडीसी और कटरा की चाय के साथ
सिविल लांइस की कॉफी
अब तुम्हारी अनुपस्थिति में विवेक को बहुत परेशान करती है
नन्हें अंडे वाला उससे अक्सर पूछता है
‘आमलेट में मिर्चा झोंकवावे वाले कहाँ चले गएन ?’
तुम्हें विवेक को बताना चाहिए था कि तुम यहाँ से जाने के बाद
कभी चाय पीने किसी के साथ पाँच किलोमीटर सिर्फ इसलिए नहीं जाओगे
कि यहाँ की चाय में अदरक नहीं होती
इलाहाबाद छोड़ने के बाद
किसी के साथ बोट क्लब पर घंटों खाली बैठने की सिर्फ फेंटेसी कर सकोगे

खाली बैठना एक ऐसी विलासिता है
जिसे अफोर्ड करने का दम सबमें कहाँ बचा !

बिंदास दोस्तियाँ क्या सिर्फ इलाहाबाद की ही मिट्टी में उगती हैं ?
मुरलीधर, हिमांशु रंजन और कैलाश जैसे दोस्त थे क्या इसके पहले तुम्हारी जिंदगी में?
तुमने तो सफे़द बाल देख कर दूर से नमस्कार करना ही सीखा था परंपराओं से
इनके साथ वो नशीले दिन
प्रेम, साहित्य और सरोकारों पर लंबी बहसें
फिर उनींदी लावारिस रातें
बेहिसाब कहकहे
कितना खून था तुम्हारी नसों में तब कि हमेशा मचलता ही रहता था उत्साह में
इतना अपनापन कि तुम्हारा ये कहना कि किसी भी गली में तुम्हें नशे में छोड़ दिया जाए
रात को तुम वहीं किसी के भी घर के सामने सो जाओगे
इतना अपना तो अपना घर भी हमेशा नहीं लगता यार !
ये तुम्हारी गलतफहमी है विमल !
कि सिर्फ तुम्हीं इलाहाबाद के लिए रोते रहते हो
इलाहाबाद भी तुम्हें बहुत याद करता है में !

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