लड़का | प्रयाग शुक्ला
लड़का | प्रयाग शुक्ला

लड़का | प्रयाग शुक्ला

लड़का | प्रयाग शुक्ला

सीढ़ियाँ चढ़कर जाता है वह लड़का
धम-धम करता दरवाजा।
जगा देता हमें नींद से –
अपनी चमकती आँखों के साथ,
कुछ पूछता, बताता
फिर खड़ा हो जाता चुपचाप दीवार
के पास,
देखता हमें।
‘हम गए थे बहुत दूर,
घूम कर आए बहुत दूर सचमुच’
देखता खिलौनों को, धूप के रंग को
‘कितना अछ्छा है यह रंग’
आँख खोलकर हम कुछ देखें, अच्छी तरह
इससे पहले ही चला जाता है
बरामदे में, पुकारता किसी को,
वह लड़का।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *