कार्यालय में वसंत | आलोक पराडकर
कार्यालय में वसंत | आलोक पराडकर

कार्यालय में वसंत | आलोक पराडकर

कार्यालय में वसंत | आलोक पराडकर

कितने दमक रहे हैं उनके चेहरे
कहीं गुम है उस अनुभव की सफेदी
जिनके बखान में वे काफी वक्त गुजार देते थे
मगर क्या करें तोंद का
बेटे की टी-शर्ट में
कुर्सी पर कुछ ज्यादा ही लटक आती है

यह वसंत का एक वर्णन है
साइबेरियन पंछियों की तरह
आता है युवाओं का कोई झुंड
और वे अपनी काई साफ करने में जुट जाते हैं

हर कोई चाहता है कि उसके हिस्से में अधिक हों
बेटियों के बराबर की लड़कियाँ
जोर जोर से सुनाई देने लगती हैं
भाषा और वर्तनी की बार-बार दोहराई गई नसीहतें
कार्यवाही और काररवाई, लिए और लिए का फर्क
यह कि वापस लौटना होता है गलत प्रयोग
बात बात में झल्लाने वालों का हृदय
कितना विशाल हो उठा है

लेकिन पंछी तो जाने के लिए आते हैं
और इस प्रकार हर वसंत के बाद
यहाँ पतझड़ भी आता है

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *