जीवन का केंद्र है प्रेम | राजकुमार कुंभज
जीवन का केंद्र है प्रेम | राजकुमार कुंभज

जीवन का केंद्र है प्रेम | राजकुमार कुंभज

जीवन का केंद्र है प्रेम | राजकुमार कुंभज

जीवन का केंद्र है प्रेम
प्रेम का केंद्र है जीवन का तकियाकलाम
सहज ही कहते हैं जिसे मनुष्यता
मैं लिखता हूँ कविता तो जानता हूँ यह भी
कि सहज नहीं है लिखना कविता
एक तरफ खाईं, एक तरफ खंदक, एक तरफ कुआँ भी
प्रेम नहीं कहीं, कहीं भी नहीं
अफवाह हुआ जाता है अब तो वह रंग तीसरा जो लाल
घास-फूस का ढेर है प्रेम-रक्ताभ हर वक्त
और जमाना ढूँढ़ता है माचिसें
किसिम-किसिम की
भाषा से ही आती है तमीज किंतु
रोटी और रोम-रोम में बसे प्रेम की
जाना था, शो था, एक फिल्म थी, दिन था, वक्त था बारह बजे
और मेरे पास मेरी फुरसत का नहीं था वक्त
थीं आशाएँ, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ और उपेक्षाएँ तमाम
थीं तालाब में तैरती मछलियों जैसी स्वतंत्रता
जीवन के केंद्र में कुछ प्रेम-कहानियाँ भी
जीवन का केंद्र है प्रेम।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *