वह हँसी होती है
महज चेहरे की शोभा
जिसका रहस्य नहीं जानता हँसने वाला
सचमुच की हँसी
उठती है रोम-रोम से
जब हँसता है कोई किसान तबीयत से
खिल उठती है कायनात
नूर आ जाता है फूलों में
घास पहले से मुलायम हो जाती है
उस क्षण टपकता नहीं पुरवाई में दुख
पूछना नहीं पड़ता
बाईं को दाईं आँख से खिलखिलाने का सबब!