जब हम पहली बार मिले थे | प्रतिभा कटियारी
जब हम पहली बार मिले थे | प्रतिभा कटियारी

जब हम पहली बार मिले थे | प्रतिभा कटियारी

जब हम पहली बार मिले थे | प्रतिभा कटियारी

जब हम पहली बार मिले थे
खूब बारिश हो रही थी
हालाँकि धूप कहीं गई नहीं थी
लेकिन बारिश हो रही थी
मैं भीगना चाहती थी
लेकिन भीगने से बच रही थी
तुम भीगना नहीं चाहते थे
लेकिन मुझे भीगने से बचाने की खातिर
तुम भीग रहे थे
हालाँकि एक सूखा रेनकोट
हमारे दरम्यान था
मुस्कुराता हुआ
जब हम पहली बार मिले थे
आस-पास गाड़ियों का शोर था
हालाँकि एक गहरा सन्नाटा था
हमारे दरम्यान
मैं कितना बोल रही थी
जाने क्या-क्या, जाने कहाँ-कहाँ की
हालाँकि उस बोलने में
मैं अपनी चुप्पी सहेज रही थी
और अपने बोलों से
तुम्हारा मौन भी गढ़ रही थी
आखिर हम
बोलने से बचा लाए थे
सबसे खूबसूरत शब्द
जब हम पहली बार मिले थे
समंदर पर बरस रही थीं उम्मीदें
और पेड़ की शाखों पर
बरस रही थी बर्फ
वादियों में कोई धुन बरस रही थी
और जेहन के दरीचे में
बरस रही थी रोशनी
हालाँकि बाहर अँधेरा बरस रहा था
जब हम पहली बार मिले थे…

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *