इतिहास की आशा | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी
इतिहास की आशा | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

इतिहास की आशा | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

इतिहास की आशा | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी

युद्ध के बाद
पद्मिनी की जगह
मिलती है मुट्ठी भर राख
सिकंदर को जाना पड़ता है खाली हाथ
विलाप करना पड़ता है प्रभु को
अपने ही कोटि-कोटि शवों पर
पापों के हिम में गलना पड़ता है
महासमर के अजेय योद्धाओं को

निराशा की कविता नहीं है यह
इतिहास की आशा है
आने वाले विजेताओं से।

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