हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती | अनुज लुगुन
हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती | अनुज लुगुन

हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती | अनुज लुगुन

हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती | अनुज लुगुन

हमारे सपनों में रहा है
एक जोड़ी बैल से हल जोतते हुए
खेतों के सम्मान को बनाए रखना
हमारे सपनों में रहा है
कोइल नदी के किनारे एक घर
जहाँ हमसे ज्यादा हमारे सपने हों
हमारे सपनों में रहा है
कारो नदी की एक छुअन
जो हमारी आलिंगनबद्ध बाजुओं को और गाढ़ा करे
हमारे सपनों में रहा है
माँदर और नगाड़ों की ताल में उन्मत्त बियाह
हमने कभी सल्तनत की कामना नहीं की
हमने नहीं चाहा कि हमारा राज्याभिषेक हो
हमारे शाही होने की कामना में रहा है
अँजुरी भर सपनों का सच होना
दम तोड़ते वक्त बाँहों की अटूट जकड़न
और रक्तिम होंठों की अंतिम प्रगाढ़ मुहर।
हमने चाहा कि
पंडुकों की नींद गिलहरियों की धमाचौकड़ी से टूट भी जाए
तो उनके सपने न टूटें
हमने चाहा कि
फसलों की नस्ल बची रहे
खेतों के आसमान के साथ
हमने चाहा कि जंगल बचा रहे
अपने कुल-गोत्र के साथ
पृथ्वी को हम पृथ्वी की तरह ही देखें
पेड़ की जगह पेड़ ही देखें
नदी की जगह नदी
समुद्र की जगह समुद्र और
पहाड़ की जगह पहाड़,
हमारी चाह और उसके होने के बीच एक खाई है
उतनी ही गहरी
उतनी ही लंबी
जितनी गहरी खाई दिल्ली और सारंडा जंगल के बीच है
जितनी दूरी राँची और जलडेगा के बीच है
इसके बीच हैं –
खड़े होने की जिद में
बार-बार कूड़े के ढेर में गिरते बच्चे
अनचाहे प्रसव के खिलाफ सवाल जन्माती औरतें
खेत की बिवाइयों को
अपने चेहरे से उधेड़ते किसान
और अपने गलन के खिलाफ
आग के भट्ठों में लोहा गलाते मजदूर
इनके इरादों को आग से ज्यादा गर्म बनाने के लिए
अपनी ‘चाह’ के ‘होने’ के लिए
ओ मेरी प्रणरत दोस्त!
हमारी अर्थी शाही हो नहीं सकती।
हमारी मौत पर
शोकगीत की धुनें सुनाई नहीं देंगी
हमारी मौत से कहीं कोई अवकाश नहीं होगा
अखबारी परिचर्चाओं से बाहर
हमारी अर्थी पर केवल सफेद चादर होगी|
धरती, आकाश
हवा, पानी और आग के रंगों से रँगी
हम केवल याद किए जाएँगे
उन लोगों के किस्सों में
जो हमारे साथ घायल हुए थे
जब भी उनकी आँखें ढुलकेंगी
शाही अर्थी के मायने बेमानी होगें
लोग उनके शोकगीतों पर ध्यान नहीं देंगे
वे केवल हमारे किस्से सुनेंगे
हमारी अंतिम क्रिया पर रचे जाएँगे संघर्ष के गीत
गीतों में कहा जाएगा
क्यों धरती का रंग हमारे बदन-सा है
क्यों आकाश हमारी आँखों से छोटा है
क्यों हवा की गति हमारे कदमों से धीमी है
क्यों पानी से ज्यादा रास्ते हमने बनाए
क्यों आग की तपिश हमारी बातों से कम है
ओ मेरी युद्धरत दोस्त !
तुम कभी हारना मत
हम लड़ते हुए मारे जाएँगे
उन जंगली पगडंडियों में
उन चौराहों में
उन घाटों में
जहाँ जीवन सबसे अधिक संभव होगा।

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