हम ही हैं | मिथिलेश कुमार राय
हम ही हैं | मिथिलेश कुमार राय

हम ही हैं | मिथिलेश कुमार राय

हम ही हैं | मिथिलेश कुमार राय

हम ही तोड़ते हैं साँप के विषदंत 
हम ही लड़ते हैं साँड़ से 
खदेड़ते हैं उसे खेत से बाहर

सूर्य के साथ-साथ हम ही चलते हैं 
खेत को अगोरते हुए 
निहारते हैं चाँद को रात भर हम ही

हम ही बैल के साथ पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं 
नंगे पैर चलते हैं हम ही अंगारों पर 
हम ही रस्सी पर नाचते हैं

देवताओं को पानी पिलाते हैं हम ही 
हम ही खिलाते हैं उन्हें पुष्प, अक्षत 
चंदन हम ही लगाते हैं उनके ललाट पर

हम कौन हैं कि करते रहते हैं 
सबकुछ सबके लिए 
और मारे जाते हैं 
विजेता चाहे जो बने हों 
लेकिन लड़ाई में जिन सिरों को काटा गया तरबूजे की तरह

वे हमारे ही सिर हैं

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