हम बादल हैं | कमलेश द्विवेदी
हम बादल हैं | कमलेश द्विवेदी

हम बादल हैं | कमलेश द्विवेदी

हम बादल हैं | कमलेश द्विवेदी

हम बादल हैं अपना तो जीवन ही पानी है।
हमको तो प्यासे अधरों की प्यास बुझानी है।

यों तो सागर से हरदम हम
खारा जल पाते।
लेकिन जब भी बरसाते तो
मीठा बरसाते।
सब कहते हैं – सज्जनता की यही निशानी है।

जल के लिए कहीं भी कोई
कभी नहीं तरसे।
इसीलिए तो हम बस्ती से
जंगल तक बरसे।
फिर भी कोई प्यासा है तो प्यास मिटानी है।

स्वाति बूँद बन हम चातक की
प्यास बुझाते हैं।
कभी यक्ष का संदेशा प्रिय
तक पहुँचाते हैं।
काम सभी के आएँगे हमने यह ठानी है।

हम सुख पाएँ लोग हमें जब
देख-देख हरसें।
दुख पायें जब नैन किसी के
हम जैसे बरसें।
अगर इस तरह जियो जिंदगी बहुत सुहानी है।

बादल से जल, जल से बादल
बनते जाते हैं।
परिवर्तन का गीत यही हम
हरदम गाते हैं।
यह परिवर्तन ही जीवन की अमर कहानी है।
हम बादल हैं अपना तो जीवन ही पानी है।

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