घर के पुरुष का आगंतुक के लिए ट्रे में चाय लेकर आना | कुमार विक्रम
घर के पुरुष का आगंतुक के लिए ट्रे में चाय लेकर आना | कुमार विक्रम

घर के पुरुष का आगंतुक के लिए ट्रे में चाय लेकर आना | कुमार विक्रम

घर के पुरुष का आगंतुक के लिए ट्रे में चाय लेकर आना | कुमार विक्रम

शायद जरूरत से ज्यादा ही आश्वस्त 
शायद झेंप जैसी किसी भावना को 
आधुनिक परिधानों 
जैसे बरमूडा और टी-शर्ट से ढकते हुए 
या ध्यान अपनी ओर से 
हटाने की कोशिश करते हुए 
जैसे की हाथों में ट्रे हो ही ना 
इधर-उधर की बातचीत करते हुए 
आगंतुक को घर ढूँढ़ने में 
कोई परेशानी तो नहीं हुई 
यह जानकारी लेते हुए 
शायद परंपरा के विरुद्ध 
एक ही हाथ में ट्रे पकड़े हुए 
वह हिम्मत कर प्रवेश करता है 
एक ऐसी दुनिया में 
जहाँ माँ, बहन, पत्नी, बेटी 
अथवा नौकरानी के सिवा 
कोई और दाखिल नहीं हुआ है 
और यकायक कई सवालों से 
अपने-आप को घिरा पाता है 
जो जरूरी नहीं पूछे ही जाएँ 
लेकिन वातावरण में 
उनकी अकाट्य उपस्थिति होती है 
‘शायद पत्नी बीमार होगी’ 
माँ कुछ ज्यादा ही उम्रदराज होंगी 
बहनों की शादी हो गई होगी 
अभी बेटी बहुत छोटी होगी 
इकलौता होगा 
नौकरानी रखने की हैसियत नहीं होगी 
उसे भी लगता है 
मानो किसी पहाड़ी की चढ़ाई उसने की है 
और ‘अतिथि देवो भवः’ 
अपने पत्नी अथवा माँ 
अथवा बहन अथवा बेटी 
अथवा किसी नौकरानी के कंधों पर 
सदियों सवार होकर नहीं 
खुद एक बार गहरी साँस लेते हुए 
चरितार्थ करने की कोशिश की है

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