एक खो चुकी कहानी | पंकज चतुर्वेदी
एक खो चुकी कहानी | पंकज चतुर्वेदी

एक खो चुकी कहानी | पंकज चतुर्वेदी

क्या तुम्हें याद है 
अपनी पहली रचना 
एक खो चुकी कहानी 
जो तुमने लिखी 
जब तुम नौ-दस साल के थे 
वही कोई सन् अस्सी-इक्यासी की बात है

तुम्हारे पिता यशपाल पर 
शोध कर रहे थे 
और कभी-कभार समूचे परिवार को 
उनकी कुछ कहानियाँ सुनाते थे 
शायद उसी से प्रभावित होकर 
तुमने वह कहानी लिखी 
जिसमें एक चोर का पीछा करते हुए 
गाँववाले उसे पकड़ लेते हैं 
गाँव के बाहर एक जंगल में 
उसे पीटते हैं 
और इस हद तक 
कि आख़िर 
उसकी मौत हो जाती है

तब क्या तुम्हें याद है 
कि एक दिन घर में आए 
बड़े मामा के बेटे 
अपने सुशील भाईसाहब को 
जब तुमने वह कहानी दिखाई 
उन्होंने तुम्हारा मन रखने 
या हौसला बढ़ाने के मक़सद से कहा : 
अरे, इसका अंत तो बिलकुल 
यशपाल की कहानियों जैसा है

आज जब इस घटना को 
लगभग तीस साल बीत गए 
क्या तुम्हें नहीं लगता 
कि देश-दुनिया के हालात ऐसे हैं 
कि गाँव हों या शहर 
चोर कहीं बाहर से नहीं आता 
वह हमारे बीच ही रहता है 
काफ़ी रईस और सम्मानित 
उसे पकड़ना और पीटना तो दूर रहा 
हम उसकी शिनाख़्त करने से भी 
बचते हैं

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