एक कविता बेटी शीरीं के नाम | फ़िरोज़ ख़ान
एक कविता बेटी शीरीं के नाम | फ़िरोज़ ख़ान

एक कविता बेटी शीरीं के नाम | फ़िरोज़ ख़ान

एक कविता बेटी शीरीं के नाम | फ़िरोज़ ख़ान

(1.)

मेरी आँखों का अधूरा ख्वाब हो तुम
आधी नींद का टूटा हुआ-सा ख्वाब

मेरे लिए तो तुम वैसे ही आई
जैसे मजलूमों की दुआएँ सुनकर
सदियों के बाद आए
पैगंबर
या कि मथुरा की उस जेल में
एक बेबस माँ की कोख
में पलता एक सपना
पैवस्त हुआ हो
मुक्ति के इंतजार में

मैं जानता हूँ कि
तुम्हारे पास न कोई छड़ी है पैगंबरी
और न ही कोई सुदर्शन चक्र

दुनिया के लिए
तुम होगी सिर्फ एक औरत
एक देह
और होंगी
निशाना साधतीं कुछ नजरें

तुम्हारे आने की खुशी है बहुत
दुख नहीं, डर है
कि पैगंबर के बंदे अब
ठंडा गोश्त नहीं खाते

(2.)

मैंने देखा
तुम आई हो
आई हो तो खुशआमदीद

आधी दुनिया तुम्हारी है
जबकि मैं जानता हूँ कि
इस आधी दुनिया के लिए
तुम्हें लड़ना होगी पूरी एक लड़ाई
तुम्हारी इस आधी दुनिया
और मेरी आधी दुनिया का सच
नहीं हो सकता एक

तुम आई हो तब
जबकि खतों के अल्फाज़
दिखते हैं कुछ उदास
कागज पर नहीं दिखता

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