दोस्त | प्रमोद कुमार तिवारी
दोस्त | प्रमोद कुमार तिवारी

दोस्त | प्रमोद कुमार तिवारी

दोस्त | प्रमोद कुमार तिवारी

लंबे अरसे बाद
दोस्त बैठा है सामने
वही दोस्त जिसके साथ होने पर
समय बन जाता था
गौरैया
वही जिसके साथ के लिए
जाने कितनी बार फाँदी थी चहारदीवारी
जिसके लिए तोड़ दिया था दीदी का गुल्लक
वह बैठा है सामने
और समय है कि पसरा हुआ है
मँड़िया मारे भैंस की तरह
मैं ढ़ूँढे जा रहा हूँ बात
कि घर, पत्नी, बच्चे और गाँव के हाल के बाद
अब और क्या पूछूँ
उसके पसीने की दुर्गंध से बेहाल
इशारों में तीन बार दे चुका हूँ
नहाने की सलाह
पर वह है कि सफर की थकान उतारने की
कोई जल्दी नहीं उसे
जी जान से लगा है वह
15 वर्षों के इतिहास को
कुछ घंटों के संदूक में समोने में।
वह तो बस खूब सारा बतिया लेना चाहता है
भोंपू जैसी आवाज में
मैं और धीरे बोलता हूँ
पर उसकी आवाज उल्टे बढ़ती जाती है
वह बताए जा रहा है
कि इस साल फिर बँसवारी में
कोई फेंक गया है नवजात बच्ची को
कि नौकरी खोज-खोज के हताश
हम सब के मास्टर साहब
काम करने लगे हैं दारू के ठेके पर।
तन्मयता के साथ, एक आँख दबाकर
बता रहा है कि कैसे उसने
सेठ को पिछले तीन महीनों में
चार सौ का चूना लगाया है
और पगार के चौबीस सौ के बदले
गढ़ लिया है अट्ठाइस सौ रुपए
मैं बिलकुल नहीं कहता कि
कानूनन इस काम के बारह हजार मिलने चाहिए।
हाथ जोड़ के प्रार्थना कर रहा है भगवान से
अपने धर्मात्मा मालिक के लिए
जो शहर में मुफ्त पढ़ा रहे हैं उसके बेटे को
जब्त कर लेता हूँ खुद को यह कहने से
कि उसकी मजदूरी के हजारों रुपए
बचाने का बहाना है ये।
जग्गूराम की सुंदर पतोहू से लेकर
हमारे खेलने के चौपाल तक पर
कब्जे की सारी कहानी
सुना रहा है दोस्त
धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है मेरी खीज
और बेचैनी
दिमाग लगातार ढूँढ़ रहा है
उससे मुक्ति का उपाय
बोले जा रहा है दोस्त
पर नहीं सुनाई पड़ रही उसकी आवाज
समझ में नहीं आ रहा
किसे कोसूँ
खुद को
या उस समय को
जिसे दोस्त अब भी समझ रहा है
गौरैया।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *