दिए का हाल | प्रदीप शुक्ल
दिए का हाल | प्रदीप शुक्ल

दिए का हाल | प्रदीप शुक्ल

दिए का हाल | प्रदीप शुक्ल

दिए के पास
चल कर
पूछिए तो हाल कैसा है

रुई में
कुछ नमी है
आँसुओं को साथ लाई है
हुई कितने किसानों की
वहाँ जग से विदाई है
धुआँ
जलते हुए
गोविंद की बस खाल जैसा है

परी भर तेल
जो उसमे पड़ा है
बहुत है कड़वा
उसे जिसने उगाया
पास उसके फूस का मड़वा
जिसे
बारिश का डर
हर साल पिछले साल जैसा है

दिए में कुछ
पसीने की महक
अब तलक है बाकी
किसी जुम्मन की मेहनत
इस शहर ने भला कब आँकी
सुनोगे
क्या कथा,
जुम्मन भी बस कंगाल जैसा है

इन्ही
गोविंद, जुम्मन ने
उजाले ये बिखेरे हैं
मगर सारे दियों की तली में
बैठे अँधेरे हैं
कि जैसे
मछलियों का हाल
सूखे ताल जैसा है
दिए के पास
चल कर
पूछिए तो हाल कैसा है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *