धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन
धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन

धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन

धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन

धुनिए ने फैला दी बादल की गठरी
धुनी हुई रुई हुई अलसाई बदरी

तपी हुई धरती की साँस चली आई
मुरझाए जीवन की आस चली आई
लौट रहे पाखी फिर पाने को जीवन
भटके थे वे सब भी कितने ही बन बन
खुश होती मन में तलैया की मछरी
धुनिए ने फैला दी बादल की गठरी

बरगद भी सूखा था उजड़ी मड़ैया
घोंसला कहाँ जोड़ूँ, सोचती चिरैया
बूँद पड़ी जैसे ही कुछ हुलास आया
हिले नीम, आम, हँस पड़ी उदास छाया
जोड़ने लगी मैना फटी हुई कथरी
धुनिए ने फैला दी बादल की गठरी

छाएगा मड़ई पर नया नया छप्पर
बरखा में बाजेंगे सभी टीन टप्पर
सोघई ने जोत दिया बैलों को हल में
भागता बुधइया गुड़ जुआ ले बगल में
धरती पर फैल गई हरी हरी चुनरी
धुनिए ने फैला दी बादल की गठरी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *