माँ-2 | आनंद वर्धन

माँ-2 | आनंद वर्धन

माँ-2 | आनंद वर्धन माँ-2 | आनंद वर्धन माँ आँच होती हैदेती है तपिशमाँजती है हमारे संस्कारों कोऔर सहेजती जाती हैसब स्मृतियाँपुराने कपड़ों की तह सी। कब हम घुटनों के बल चलेखड़े हुए कबकब हमारी जुबान से झरे तोतले शब्दपहली पहली बारमौलसिरी के फूल सेकब हम बड़े हुए कमरे के फर्श परकब सीखा लिखनाऔर कबहमारे … Read more

माँ-1 | आनंद वर्धन

माँ-1 | आनंद वर्धन

माँ-1 | आनंद वर्धन माँ-1 | आनंद वर्धन माँ सपने सी सुंदरसपने चुनती हैरेशम जैसे कोमलसपने बुनती है भोर किरन हैं सखियाँमाँ के सुख दुख कीबातें करती है उनसे माँगुपचुप सी उसे पता हैकब बाबूजी जागेंगेगुस्साएँगे जल्दीदफ्तर भागेंगे उनके दफ्तर के कागजमें, माँ रहतीडाँट, डपट गुस्सा खिजलाहटसब सहती भइया दिन भर दौड़धूप कर आता हैमाँ … Read more

मेघों ने दी ताल कि सावन बीत गया | आनंद वर्धन

मेघों ने दी ताल कि सावन बीत गया | आनंद वर्धन

मेघों ने दी ताल कि सावन बीत गया | आनंद वर्धन मेघों ने दी ताल कि सावन बीत गया | आनंद वर्धन कैसा मचा धमाल कि सावन बीत गया बड़े ताल की लहरें आज जवान हुईंचलती दुलकी चाल कि सावन बीत गया बंधन सारे टूटेंगे यह लगता हैउमड़ा छोटा ताल कि सावन बीत गया मछुआरिन … Read more

बहुत दिनों से… | आनंद वर्धन

बहुत दिनों से... | आनंद वर्धन

बहुत दिनों से… | आनंद वर्धन बहुत दिनों से… | आनंद वर्धन बहुत दिनों से तुमने कोई चिट्ठी लिखी नहींबहुत दिनों से दरवाजे पर मैना दिखी नहीं सोच रहा हूँ सुबह सुबह लगती होगी कैसीसूरज की पहली किरनों सी कोमल रेशम सीबोली तेरी गूँज रही घर के कोने कोनेतेज हवा पर चढ़ आई भोली खुशबू … Read more

धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन

धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन

धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन धुनिए ने फैला दी | आनंद वर्धन धुनिए ने फैला दी बादल की गठरीधुनी हुई रुई हुई अलसाई बदरी तपी हुई धरती की साँस चली आईमुरझाए जीवन की आस चली आईलौट रहे पाखी फिर पाने को जीवनभटके थे वे सब भी कितने ही बन बनखुश होती मन में … Read more

घर घर में | आनंद वर्धन

घर घर में | आनंद वर्धन

घर घर में | आनंद वर्धन घर घर में | आनंद वर्धन घर घर में फैल गई है खबरनफरत का ज्वार चला सैर पर लोगों के जंगल वीरान हैंगलियाँ हैं सहमी, सुनसान हैंखिड़की दरवाजों की झिरियों सेझाँक रही मुन्नी हैरान है क्या हुआ अचानक चुप हो गयाकल तक तो बोल रहा था शहरघर घर में … Read more

अनजाने शहरों के बाशिंदे हो गए | आनंद वर्धन

अनजाने शहरों के बाशिंदे हो गए | आनंद वर्धन

अनजाने शहरों के बाशिंदे हो गए | आनंद वर्धन अनजाने शहरों के बाशिंदे हो गए | आनंद वर्धन अनचीन्ही गलियों में उलझे से खो गए कितने ही रंगों के बिखरे थे सपनेदूर से बुलाते थे लगते थे अपनेमृगतृष्णा जैसा था रेतों का जंगलपाँव जले नहीं मिला जल कोई शीतलआँसू की लड़ियाँ ज्यों आँख में पिरो … Read more