चुल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न | दिनेश कुशवाह
चुल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न | दिनेश कुशवाह

चुल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न | दिनेश कुशवाह

चुल्लू भर पानी का सनातन प्रश्न | दिनेश कुशवाह

अगर आपसे कोई पूछे कि 
एक ऐसी फूहड़, बेढंगी और कर्कशा 
पत्नी के साथ 
बाप रे बाप 
कैसे निभाते हैं आप? 
या कोई कहे कि 
एक ऐसे उज्जड़, भोड़े और मूर्ख 
पति के साथ 
कैसे रहती हैं आप? 
तो इसका उत्तर ‘आथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ से 
अधिक कठिन है।

यहाँ ‘अहं ब्रह्मास्मि’ या ‘तत्वमसि’ 
कहने से काम नहीं चलेगा। 
कई बार छुद्र प्रश्नों में 
सम्यताएँ छिपी होती हैं।

इधर कभी आपने गौर किया 
कि दस-बीस रुपये का सामान 
बेचने वाले 
पाँच सौ या हज़ार का नोट देने पर 
किस तरह झुँझला उठते हैं 
या रुआँसे हो जाते हैं!

पानी तो आजकल हर जगह बिकता है 
पर क्यों नहीं मिलता चुल्लू भर पानी 
कई बार सरल प्रश्नों से 
दर्शनों का जन्म होता है।

बड़ी-बड़ी बातें करने के आदी हम लोग 
छोटे लोगों और छोटी बातों पर 
ध्यान नहीं देते। 
दुनिया को समझने के लिए 
उलझे रहते हैं सनातन प्रश्नों में।

जैसे मैं कौन हूँ ? या क्या 
प्रेम ईश्वर की तरह 
अगम, अगोचर और अनिर्वचनीय है?

हम ग़ौर नहीं करते कि 
कई बार सनातन प्रश्नों में 
सनातन मूर्खताएँ छिपी होती हैं।

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