चाँद | हरे प्रकाश उपाध्याय
चाँद | हरे प्रकाश उपाध्याय

चाँद | हरे प्रकाश उपाध्याय

चाँद | हरे प्रकाश उपाध्याय

बचपन में
माँ ने मुझे, रात में
आकाश की तरफ देखकर
चाँद के बारे में बताया था

मेरे पारिवारिक रिश्तों के बाहर
किसी से यह मेरा पहला परिचय था
जब मैं रूठ जाता
किसी बात को लेकर
मुँह फुलाता तो माँ
चाँद की कसम देती
मेरे सबसे उदास क्षणों में तब
माँ मुझे
चंदामामा के गीत सुना कुछ भी खिलाती
चाँद पर बनी लोरी मुझे सुकून की दुनिया में ले जाती

मित्रो, जाने अनजाने चाँद से मेरा
बचपन से रिश्ता है
वैसे चाँद हर बच्चों का फरिश्ता है
अब जबकि
रात और दिन का फर्क जानने लगा हूँ
रात मुझे हमेशा डरावनी
और खौफनाक लगती है
पर विश्वास मानिए
रात के डरते क्षणों में
चाँद का दिख जाना
मुझे बल देता है
साहस देता है
तन्हाई में भी शानदार ढंग से जीने का
सबक देता है और समझ यह
कि कोई कभी अकेला नहीं होता
चाँदनी के द्वारा
अपना सूरज उगाने की
सलाह भेजता है चाँद

फसलों में दूध बनकर
धरती पर खुद आता है चाँद

मैं रात को सूरज गढ़ता हूँ
सपनों में रोशनी भरता हूँ
इसका सूत्र चाँद में पढ़ता हूँ
और रात की उचटती हुई नींद को तोड़कर
मैं देखता हूँ
सुबह हो रही है

उस सुबह में
सड़क पर निकलकर
आकाश में देखता हूँ मैं
चाँद के लिए
सूरज की किरणें
नम आँखों से विदाई दे रही है
कि उसे
दूसरी दुनिया में काम पर जाना है
मै जानता हूँ कि चाँद
दूसरी दुनिया के लोगों को
मेरी तरह खत देने जा रहा है,
वह रोज आता है
रोज जाता है
हर रोज नये संदेश
और खबर मेरे लिए लौटकर लाता है

आखिर कोई बात है जरूर
जिससे चाँद हादसों से भरे समय में
पूरी यात्रा में कहीं लहूलुहान नहीं हो पाता है

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *