बूढ़े आदमी औरत की बातचीत | नरेंद्र जैन
बूढ़े आदमी औरत की बातचीत | नरेंद्र जैन

बूढ़े आदमी औरत की बातचीत | नरेंद्र जैन

बूढ़े आदमी औरत की बातचीत | नरेंद्र जैन

(जॉर्ज फ्लेमिंग की कृति ‘इन द कैसल ऑव माय स्किन’ के दो पात्रों से प्रेरित)

माँ 
हाँ पा 
पा 
हाँ माँ 
कितना जी लिए हम है ना 
हाँ माँ कभी कभी बहुत अँधेरा लगता है 
हाँ पा रोशनी कब रही हमारी दुनिया में 
कब्र में लटके हैं 
गाँव कहता है 
हाँ माँ कब्र में लटके हैं 
गुलाम अब भी बिक रहे 
हाँ पा सौ बरस गुजर गए यही देखते 
माँ 
हाँ पा 
तुम कहती थीं सब ठीक हो जाएगा 
हाँ पा सब ठीक हो जाएगा 
पा 
हाँ माँ 
हम फिर कब्र से लौटेंगे इधर 
हाँ माँ हम लौटेंगे 
पा 
हाँ माँ 
तुम ठिठुर रहे हो आओ गोद में 
याद है जब तुम बच्चे थे 
गर्म गर्म नींद, मीठे सपने 
हाँ माँ याद है जब बच्चे थे 
माँ 
हाँ पा 
हम फिर बच्चे होंगे 
हाँ पा 
नए नए बच्चे 
नई नई जमीन 
हाँ 
माँ 
हाँ पा

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