बेटे से | रघुवीर सहाय बेटे से | रघुवीर सहाय टूट रहा है यह घर जो तेरे वास्ते बनाया थाजहाँ कहीं हो आ जाओ … नहीं यह मत लिखोलिखो जहाँ हो वहीं अपने को टूटने से बचाओ हम एक दिन इस घर से दूर दुनिया के कोने में कहींबाँहें फैला कर मिल जाएँगे