बारिश | पंकज चतुर्वेदी
कमलेश्वर के निधन का फ़ोन
बहुत देर रात आया था
देर रात घंटी बजती है
और बीच में ही कट जाती है
चौंककर हलके-से भय के साथ
देखता हूँ
एक दोस्त का नंबर
पूछने पर उसने बताया :
सब ठीक है
ग़लती से लग गया था फ़ोन
ग़लती से ही लग सकता है फ़ोन
इतनी रात गए
कोई क्या सांत्वना दे सकता है ?
बहुत घृणा है यहाँ बहुत अपमान
एक तेज़ाब की बारिश जैसा है यह सब कुछ
यह कैसा समय है जिसमें
आदमी जहाँ ढूँढ़ता है प्यार
वहाँ मिलती है हिक़ारत
जहाँ सुख वहाँ तकलीफ़
जहाँ नींद
वहाँ एक स्वप्न का
जाता हुआ अक्स