बरसात की एक शाम छत पर | रेखा चमोली
बरसात की एक शाम छत पर | रेखा चमोली
पूरे दिन घिरे रहने के बावजूद
बादलों ने कपड़े धो कर झटके भर हैं
और अब
एक पहाड़ को दूसरे से जोड़ती
बादलों की सीढ़ियों पर चढ़ फिसल रही हैं किरणें
कुछ दिनों पहले लगी आग में
झुलसे अधजले पेड़ों की जड़ें
अपनें अँधेरे किचन में व्यस्त हैं
निराश हैं अपनी जड़ता पर
तेजी से आता एक पंछी
तार से टकराकर घायल हो गया है ।
हवा को अपना दुपट्टा तेजी से लहराता देख
सूरज ने कस कर अपना लाल मफलर लपेट लिया
दस खिड़कियों वाले घर से
सूरज की माँ ने
सूरज को बुलाना शुरू कर दिया है ।