Tushar Dhawal
Tushar Dhawal

( मरीन ड्राइव , मुंबई)

बदमाश हैं फ़ुहारें 
नशे का स्प्रे उड़ाकर होश माँगती हैं 
गरम समोसे सी देह पर 
छन्न् 
उँगली धर देती है आवारा बूँद 
जिसकी अल्हड़ हँसी में 
होंठ दबते ही आकाशी दाँत चमक उठते हैं

हुक्के गुड़गुड़ाता है आसमानी सरपंच 
खाप की खाट पर 
मत्त बूँदों की आवारा थिरकन 
झमझमझनननननननझनझनझन 
नियम की किताबें गल रही हैं 
हो रहे 
क़ायदे बेक़ायदा !

अल-क़ायदा ? 
तू भी आ यार 
इनसान हो ले

और यह पेड़ जामुन का 
फुटपाथ पर ! –

बारिश की साँवली कमर पर 
हाथ धर कर 
उसकी गर्दन पर 
रक्त-नीलित चुंबनों का दंश जड़कर 
झूमता है 
कुढ़ा करियाकुल बुलाया बादल 
गला खखारता फ्लैश चमका रहा है

क़ाफिया कैसे मिलाऊँ तुमसे 
जबकि मुक्त-छंद-मौसम गा रहा है 
अपनी आज़ाद बहर में

चलो भाप बनकर उड़ जाएँ 
मेघ छू आएँ 
घुमड़ जाएँ भटक जाएँ दिशायें भूल जाएँ 
नियम गिरा आएँ कहीं पर

मिटा दें अपनी डिस्क की मेमोरी 
अनन्त टैराबाइट्स की संभावना के 
नैनो चिपके वामन बन 
चलो कुकुरमुत्ते तले छुप जाएँ 
बारिश को ओस के घर चूम आएँ

शाम की आँख पर सनगॉग्स रख दें 
बरगद के जूड़े में कनेर टाँक 
चलो उड़ चलें 
अनेकों आयाम में बह चलें 
झमकती झनझनाहट के बेकाबूपन में 
देह को बिजली सी चपल कर 
चमक जाएँ कड़क जाएँ लरज़ जाएँ 
बरस जाएँ प्रेम बन कर 
रिक्त हो जाएँ

तुम इसे अमृत कहो 
और मैं आसव 
यहाँ पर 
सब एक है

बदमाश हैं फुहारें 
मरीन ड्राइव पर 
वाइट वाइन बरसाती हुईं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *