अपने-अपने अजनबी | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी अपने-अपने अजनबी | विश्वनाथ-प्रसाद-तिवारी मैं अपनी इच्छाएँकागज पर छींटता हूँमेरी पत्नी अपनी हँसीदीवारों पर चिपकाती हैऔर मेरा बच्चा कभी कागजों को नोचता हैकभी दीवारों पर थूकता है।