अंतिम प्रेम | चंद्रकांत देवताले
अंतिम प्रेम | चंद्रकांत देवताले

अंतिम प्रेम | चंद्रकांत देवताले

अंतिम प्रेम | चंद्रकांत देवताले

हर कुछ कभी न कभी सुंदर हो जाता है

बसंत और हमारे बीच अब बेमाप फासला है

तुम पतझड़ के उस पेड़ की तरह सुंदर हो

जो बिना पछतावे के

पत्तियों को विदा कर चुका है

थकी हुई और पस्त चीजों के बीच

पानी की आवाज जिस विकलता के साथ

जीवन की याद दिलाती है

तुम इसी आवाज और इसी याद की तरह

मुझे उत्तेजित कर देती हो

जैसे कभी-कभी मरने के ठीक पहले या मरने के तुरंत बाद

कोई अंतिम प्रेम के लिए तैयार खड़ा हो जाता है

मैं इस उजाड़ में इसी तरह खड़ा हूँ

मेरे शब्द मेरा साथ नहीं दे पा रहे

और तुम सूखे पेड़ की तरह सुंदर

मेरे इस जनम का अंतिम प्रेम हो।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *