अभिव्यक्ति | कुमार मंगलम
अभिव्यक्ति | कुमार मंगलम
आग के बीचों-बीच
चुनता हूँ अग्निकणों को
सोने के भरम में
रेत के
चमकते सिकते
धँसाते हैं मुझको भीतर तक रेत में
पत्थर होता है वह
गहरे उतरता हूँ पानी में
तलाशता हूँ मोती
पर मिलता है सबार
सार्थकता की यह तलाश
हर बार निरर्थक हो जाता है
खोजता हूँ लगातार
पर नहीं पाता हूँ
जिसके लिए भटकता हूँ
अभिव्यक्ति या अपनी ही आवाज
की बेचैनी