उधड़ गया हूँ कितनी-कितनी जगहकिरनें मेरी तुरपाई कर रही हैंदेखिए न आप –बाँच रहा हूँ धरतीऔर भरा जा रहा है आसमान पूरब का लाल रंगअभी गीला है बहुतदवात में भरा हुआइसी लाल से सुबह-सुबहमैं अपनी आयु के प्रूफ देखता हूँ।