आशंका | दिव्या माथुर आशंका | दिव्या माथुर मेरी मुंडेर पर कौवा रोज़ रोज़काँव काँव करता हैकमब्ख़त कितना झूठ बोलता हैऔर काली बिल्लीजब तब रास्ता काट जाती हैआशंका के विपरीतकुछ नहीं होता!