आरोप | दिव्या माथुर आरोप | दिव्या माथुर झोंपड़े कीझिर्रियों सेझर के आते झूठख़सरे से फैलने लगेबदन पर मेरेकितने छिद्रों को बंद करतीकेवल अपने दो हाथों सेसच को सीने में छिपामैं जलती चिता परबैठ गई न रहीं झिर्रियाँन झोंपड़ान ही झूठ!