आकांक्षा | त्रिलोचन
आकांक्षा | त्रिलोचन

आकांक्षा | त्रिलोचन

सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के
कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में,
बजाते ही पाया, बज कर यही तार सब को
बहा ले जाएँगे, भनक पड़ जाए तनिक तो।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *