आग | महेश वर्मा
आग | महेश वर्मा

आग | महेश वर्मा

आग | महेश वर्मा

पृथ्वी पर कैसे आई आग?
प्रश्न से काफी पहले से होती आई आग।
यज्ञ से या चोरी से, प्रार्थना या छल?
सूर्य से या तड़ित से, युद्ध या आशीष?
देवताओं के ही पास होनी थी, जो कैसे आई आग?
कैसा होता हमारा संसार आग से खाली?
एक बर्फ का गोला, एक सहमत जनसमूह?
कहाँ जाते प्रदक्षिणा को चले हुए अनंत कदम?
किन शून्य शिखरों पर टँगे होते आँच तपे गान?
ठंडी क्रूर योजनाओं के विस्तार को कैसे कोई करता पार
बगैर आग की तलवार?
आग की नाव पर करे हम पार जीवन का समुद्र,
आग में शेष नहीं होता अगर आत्मा का जल –
तो कहाँ करते अपना तर्पण
हम आग से खाली इस संसार में।

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