हाथ | महेश वर्मा

हाथ | महेश वर्मा

हाथ | महेश वर्मा हाथ | महेश वर्मा अभी इस पर धूल की पतली परत है लेकिनयह मेरा हाथ है जिसे देखता हूँ बार बारडूबकर जीवन में। यहीं कहीं हैं भाग्य और यश की पुरातन नदियाँकोई त्रिभुज घेरे हुए भविष्य का वैभव,समुद्र यात्राओं के अनाम विवरण,किसी चाँद का अपरिचित पठार, कोई रेखाजिसमें छिपाकर रखे गए … Read more

सेब | महेश वर्मा

सेब | महेश वर्मा

सेब | महेश वर्मा सेब | महेश वर्मा जब इतनी बारिश लगातार हुईकि डूब सकता था कुछ भीमैं भागकर कमरे में आया औरउठाकर बाहर आ गया – यह अधखाया सेब।मुझे याद आया जब लगी थी आग पिछली गर्मियों मेंतब भी मैंने बचाया था –एक अधखाया सेब।जाड़े में धीमे सड़ती हैं चीजे़ं लेकिनपाले में उँगलियाँ गलने … Read more

वर्षाजल | महेश वर्मा

वर्षाजल | महेश वर्मा

वर्षाजल | महेश वर्मा वर्षाजल | महेश वर्मा अगर धरती पर कान लगाकर सुनोइतिहास की कराहटें सुनाई देंगी।सम्राटों की हिंस्र इच्छाएँ,साम्राज्ञियों के एकाकी दुःख,स्त्रियों के रुदन की चौड़ी नदी का हहराता स्वर –गूँजते हैं धरती के भीतर।ऊपर जो देखते हो इतिहास के भग्नावशेषसूख चुके जख़्मों के निशान हैं त्वचा पर।फिर लौटकर आई है बरसात –जिंदा … Read more

लड़की और गुलाब के फूल | महेश वर्मा

लड़की और गुलाब के फूल | महेश वर्मा

लड़की और गुलाब के फूल | महेश वर्मा लड़की और गुलाब के फूल | महेश वर्मा उन दिनों हमने शायद ही यह शब्द कहा हो – प्यार! हम कुछ भी कहते टिफ़िन, हवा, दवाई, शहर, पढ़ाई …सुनाई देता प्यार। प्यार से हम नफ़रत करते, चिढ़ते और एक-दूजे को ख़त्म करते। प्यार से हम इतना दुख … Read more

रात | महेश वर्मा

रात | महेश वर्मा

रात | महेश वर्मा रात | महेश वर्मा तारों में छोड़कर आए थेहम अपना दुखयहाँ इस जगह लेटकरइसीलिए देखते रहते हैं तारे।गिरती रहती हैओस।

राख | महेश वर्मा

राख | महेश वर्मा

राख | महेश वर्मा राख | महेश वर्मा ढेर सारा कुछ भी तो नहीं जला है इन दिनोंन देह न जंगल, फिर कैसी यह राख?हर ओर?जागते में भर जाती बोलने के शब्दों में,किताब खोलो तो भीतर पन्ने नहीं राख!एक फुसफुसाहट में गर्क हो जाता चुंबनऔर ज़ुबान पर लग जाती राख!राख के पर्दे,राख का बिस्तर,हाथ मिलाने … Read more

रहस्य | महेश वर्मा

रहस्य | महेश वर्मा

रहस्य | महेश वर्मा रहस्य | महेश वर्मा कितने बल से धकेला जाए दरवाजा दाहिने हाथ सेओर उसके कौन से पल चढ़ाई जा सकेगी बाएँ हाथ से चिटखनीइसी संयोजन में छुपा हुआ है –मुश्किल से लग पाने वाली चिटखनी का रहस्य।इस चिटखनी के लगने से जो बंद होता दरवाजाउसके बाहर और भीतर सिर झुकाये खड़ी … Read more

रविवार | महेश वर्मा

रविवार | महेश वर्मा

रविवार | महेश वर्मा रविवार | महेश वर्मा रविवार को देवता अलसाते हैं गुनगुनी धूप मेंअपने प्रासाद के ताख़े पर वे छोड़ आए हैं आजअपनी तनी हुई भृकुटी और जटिल दंड-विधान नींद में मुस्कुराती किशोरी की तरह अपने मोद में है दीवार-घड़ी ख़ुशी में चहचहा रही है घास औरचाय की प्याली ने छोड़ दी है … Read more

रुका रहता है | महेश वर्मा

रुका रहता है | महेश वर्मा

रुका रहता है | महेश वर्मा रुका रहता है | महेश वर्मा किसी भी वक्त तुम वहाँ से गुजरो –तुम्हें मिलेगा धूप का एक कतराजो छूट गया था एक पुराने दिन की कच्ची सुबह सेऔर वहाँ गूँजता होगा एक चुंबन।बीतते जाते हैं बरस दर बरस औरपुरानी जगहों पर ठिठका, रुका रहता हैसमय का एक टुकड़ा।एक … Read more

मिट्टी तेल | महेश वर्मा

मिट्टी तेल | महेश वर्मा

मिट्टी तेल | महेश वर्मा मिट्टी तेल | महेश वर्मा चाहे कुछ भी कहते हों उसका संभ्रांतजनहमारी ओर तो मिट्टी तेल ही पुकारा जाता रहा हमेशा उसेपुरानी घटना नहीं है इससे जलती लालटेन की उजली रौशनी मेंदीवार पर डोलती परछाइयाँ।कहाँ ख़त्म हुई है हवा सेपंप वाले स्टोव की भरभराती आवाज़।जितने गहरे से यह आया है … Read more