सपनों की साँकल | मधु प्रसाद
सपनों की साँकल | मधु प्रसाद
बहुत दिनों से मेरी
बाँईं आँख फड़कती है।
अम्मा की चिट्ठी आएगी
ऐसा लगता है
सावन में भइया के घर में
झूला पड़ता है
यादों में सपनों की साँकल
रोज खड़कती हैं।
भाभी भी ननदी को अबकी
बार बुलाएँगी
स्वागत में वह दूध दही की
नदी बहाएँगी
उनके अंदर कोई भूली
याद तड़पती है।
सखी सहेली भी आएँगीं
फिर बतियाएँगी।
अपने जीवन के अनुभव को
|खूब सुनाएँगी
पीहर जाने की अभिलाषा
आज भड़कती है।