माटी में बिंधा
सुन रहा हूँ
बीजों के कसमसाने की आहट
गहराई में जाती जड़ों के साथ
उतर रहा हूँ
अभी-अभी मिला हूँ उस सोते से
जो फूटने-फूटने को है
बतिया आया हूँ उस पत्थर के साथ
जो माटी का एकदम शुरुआती साथी है
माटी की ही महिमा है
कि उर्वर है
आत्मा का प्रदेश
यह लाज-लिहाज
माटी की ही देन है
आ रही जो सोंधी खुशबू
हमारी ही पूर्वज-गंध है
अपनी माटी में रमा
भरा हूँ केवल
ममत्व से।