तुम्हारे शब्द | प्रतिभा चौहान
तुम्हारे शब्द | प्रतिभा चौहान

तुम्हारे शब्द | प्रतिभा चौहान

तुम्हारे शब्द | प्रतिभा चौहान

तुम्हारे शब्दों के बाट 
तौल देते हैं सारी जिंदगी 
और लाइन दर लाइन 
पढ़ जाता है संसार 
सारा पन्ना एक साँस में…

तुम्हारी हिचकियों के अंतराल में 
भर जाती है अनगिनत कहानियाँ 
और सूखा फूस सा शहर 
एक फूँक से जल जाता

सीढ़ी से उतरता चाँद भर देता है शीतल ख्वाब 
बजती झींगुरों की शहनाइयाँ 
छाती में धमकती घड़ियों की थाप 
सुनहरे सपनों की अरघनी लटकी है 
मस्तिष्क के बारीक तंतुओं पर

कोयले की परछाईं है महज यह रात 
रात्रि तो अभी शेष है

रात के दलदल में 
डूबती चिंताओं की अधजली मूर्तियाँ 
अधूरे चित्रों के रंग 
अस्मिता की अधूरी साँसें 
पीड़ामय सृजन की चीख 
टूटी हुई कंपास की सुई

और भरभरा कर सड़क बन चुकी इमारतों में 
ढूँढ़ते हो तुम अपनी जिंदगी का नक्शा…

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *