सूरज से भी नहीं छँटेगा | माधव कौशिक

सूरज से भी नहीं छँटेगा | माधव कौशिक

सूरज से भी नहीं छँटेगा | माधव कौशिक सूरज से भी नहीं छँटेगा | माधव कौशिक सूरज से भी नहींछँटेगाअंधे युग का अंधियारा। मानचित्र को रोंदरही हैंराजनीति की चालेंसेनानी को आहतकरतीयुद्धभूमि में ढालेंजाने कब से मूकपड़ा हैमीरा का हर इकतारा। संबंधों का ताना-बानाउलझ गया है जबसेसड़कों पर नाराज खड़ा हैसन्नाटा भी तब सेखुली हथेली पररखा … Read more

वैबसाइट पर हमारे | माधव कौशिक

वैबसाइट पर हमारे | माधव कौशिक

वैबसाइट पर हमारे | माधव कौशिक वैबसाइट पर हमारे | माधव कौशिक वैबसाइट पर हमारेस्वप्नखंडित दिख रहे हैं। है नहीं कंप्यूटरों मेंगाँव की चौपाल अपनीकिस तरह कैसे बचाएअब कोई भी खाल अपनी।अपनी परछाई से हीसब लोग शंकित दिख रहे हैं। शब्द बदले अंक मेंऔर अंक की छवियाँ हुईहर सनातन शृंखला कीटूटकर कड़ियाँ हुईआज के वरदान … Read more

रात-रात भर | माधव कौशिक

रात-रात भर | माधव कौशिक

रात-रात भर | माधव कौशिक रात-रात भर | माधव कौशिक रात-रात भररहे सिसकतेसंसद के गलियारे। बौने-बौने लोगों ने कीबातें ऊँची-ऊँचीसूरज के चेहरेपर मल दीकालिख साफ-समूची जुगनू का आखेट खेलनेनिकल पड़े अंधियारे। ‘सत्यमेव-जयते’के नीचेझूठ अकड़ कर बैठाशोर-शराबे में सन्नाटासन्नाटे से ऐंठा सच्चाई की गरदन छोटीभारी-भरकम आरे। भाषा को निर्जीवसमझ करऐसे पत्थर मारेझरनों की झोली में डालेसब … Read more

फिर बजी घंटी | माधव कौशिक

फिर बजी घंटी | माधव कौशिक

फिर बजी घंटी | माधव कौशिक फिर बजी घंटी | माधव कौशिक फिर बजी घंटीमोबाइल फोन की। अब हथेली मेंसभी संवेदनाएँ धँस रही हैंशक्तियाँ बाजार कीअपना शिकंजा कस रही हैंअब जरूरत ही नहींवाचालता को मौन की। वर्जनाओं की चट्टानेंरेत बन कर ढह रही हैंऔर एसएमएस के जरिएभावनाएँ बह रही हैंजिंदगी पर्याय बन कररह गई रिंगटोन … Read more

दौड़ गए विपरीत दिशा में | माधव कौशिक

दौड़ गए विपरीत दिशा में | माधव कौशिक

दौड़ गए विपरीत दिशा में | माधव कौशिक दौड़ गए विपरीत दिशा में | माधव कौशिक दौड़ गए विपरीतदिशा मेंसूरज के सब घोड़े। पानी की पगडंडीपर जबलोग चले बालू केअंधी-अंधियारीरातों मेंभाव चढ़े जुगनू केतितली के पंखोंने झेलेकाँटों भरे हथोड़े। बुझे दीयों सेरोज आरतीकरते रहे शिवालेमस्जिद के गुंबदपर फैलेअसमंजस के जालेक्या जाने कबघर लौटेंगेआखिरकार भगोड़े। गँवई-गँवार … Read more