समुद्र | जोसेफ ब्रोड्स्की
समुद्र | जोसेफ ब्रोड्स्की

समुद्र | जोसेफ ब्रोड्स्की

समुद्र | जोसेफ ब्रोड्स्की

समुद्र ज्यादा विविधता लिये होता है जमीन की तुलना में,
ज्यादा रोचक होता है वह किसी भी दूसरी चीज से।
भीतर से होता है वैसा ही जैसा दिखता है बाहर से।
मछली अधिक रोचक होती है नाशपाती से।

जमीन पर चार दीवारें और छत होती है
हमें डर लगा रहता है भेड़िये या भालू का,
भालू से हम कम डरते हैं
हम उसे नाम देते हैं ‘मीशा’
यदि कुछ अधिक कल्‍पनाशील हुए तो ‘फेद्या’।

ऐसा कुछ भी नहीं होता समुद्र में।
अपने आदिम रूप में ह्वेल मछली को फर्क नहीं पड़ता
उसे ‘बोरिया’ कहो या कहो ‘असभ्‍य’।

समुद्र भरा होता है आश्‍चर्यों से
भले ही वे इतने अच्‍छे नहीं लगते
इसकी वजह ढूँढ़ने की बहुतों को जरूरत नहीं पड़ती
धब्‍बों की गिनती करते दोष नहीं दिया जा सकता चंद्रमा को
न ही पुरुष या स्‍त्री की पापपूर्ण इच्‍छाओं को।

समुद्री जीवों का खून हमसे ज्‍यादा ठंडा होता है
उनकी कुरूपता देख बर्फ की तरह जम जाता है हमारा खून
मछली की दुकानों में भी।
यदि डार्विन ने समुद्र में गोता लगाया होता
तो हमें मालूम नहीं हो पाते जंगल के कानून
इसीलिए कि हम कर चुके होते उनमें असंख्‍य संशोधन।

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