परछाईं के पीछे | कुमार अनुपम
परछाईं के पीछे | कुमार अनुपम

परछाईं के पीछे | कुमार अनुपम

आसमान सरस था चिड़िया भर

चिड़िया की परछाईं भर आत्मीय थी धरती

लाख-लाख झूले थे रंगों के मन को लुभाने के लाख-लाख साधन थे

लेकिन वो बच्चा था

बच्चा तो बच्चा था

बच्चा परछाईं के पीछे ही चिड़िया था

आसमान काँप गया

धरती के स्वप्नों के तोते ही उड़ गए

हवा समझदार थी

लान के बाहर

बाहर और बहुत बाहर खेद आई चिड़िया की परछाईं को

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *