मुहब्बत | नीरज पांडेय
मुहब्बत | नीरज पांडेय

मुहब्बत | नीरज पांडेय

मुहब्बत | नीरज पांडेय

कोयल के सूँघे आम सी 
महक जाती है 
पूरी देह 
जब 
सूँघती है 
मुहब्बत की कोयल 
देह के किसी भी अलँग को 
और इसकी खुशबू 
कुछ यूँ लिपटी रहती है देह से 
जैसे डेहरी की माटी में 
गुड़ सान के खिला दिया हो किसी ने 
जाती ही नहीं 
ये बिना पौरुख लगाए ही सूँघी जाती है 
साँसों की आखिरी खेप 
निकलने तक 
जब तक रहती हैं ये 
मुहब्बतें 
जिंदगी नीलम सी रहती है 
और उसकी यादें 
सोने 
सी!

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